नमस्कार दोस्तो
मेरा नाम देवेन्द्र ओझा है, मैं उत्तराखंड के उधम सिहं नगर जिले के खटीमा ब्लॉक से हूं। उत्तराखंड आंदोलन में खटीमा के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिस कारण आज खटीमा का अपना इतिहास है। उत्तराखंड आंदोलन में खटीमा के सात लोग शहिद हुए, उन शहीदों को मेरी ओर आपकी ओर से आज पुन: श्रद्धांजली।
खटीमा से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मेरा गांव भुड़ाई, जी हां भुड़ाई। कुछ दशकों पहले यहां कोई भी घर नहीं था, पूरां जंगल था, झाड़ियां थी। झाड़ियों को भूड़ बोला जाता है। जब यह गांव बसाया गया तो इसका नाम ही भुड़ाई रख दिया गया।
लोग कहते हैं कि मैं बहुत सीधा इंसान हूं। इस बात का मेरे पास एक मुस्कुराहट के अलावा कोई जवाब नहीं। मैं कर्म करने में विश्वास रखता हूं और मेरा विश्वास है कि कर्म करने वाला कभी असफल नहीं होता। सन 2007 में मेरे एक दोस्त प्रदीप भारती ने मुझे उमंग ग्रुप से जोड़ा। उमंग जिसे उत्तराखंड में एसबीएमए प्लान(एनजीओ) ने गठित किया और उस समय खटीमा में इस प्रोजेक्ट को कगास संस्था (एनजीओ) देख रही थी। इसके तुरंत बाद में वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया के संपर्क में आया जो ग्रासरूट कॉमिक्स को लेकर 90 के दशक से देश भर में महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त था। वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया से जुड़ने के बाद मेरे जीवन में वो परिवर्तन आया जिसकी में कभी अपने घर की छत पर बैठकर कल्पना किया करता था। अब ऐसा लगने लगा था कि यह मेरे असल जीवन की शुरूआत है, आज से पहले मेंने न तो बाहर की दुनिया देखी थी और न इसे समझा था। उमंग ग्रुप और वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया ने मेरे सपनों को उड़ान भरने में सहयोग दिया।
अब मेरे अंदर एक जुनून था, ये ऐसा जुनून था कि इस बारे में अधिक बता तो नहीं सकता लेकिन असल के किस्से जरूर आप लोगों के साथ बांट सकता हूं।
10 में जब आचार्य नरेंद्र देव विद्यालय से जब मेरी विदाई हुई तो मेर आंखे बहुत नम थी। क्योंकि इस यह मेरे जीवन के महत्वपूर्ण पढ़ाव की समाप्ति सा था। फेयरवेल के दिन में मंच में बोलना चाहता था और अपनी अंदर की बात लोगों के साथ बांटना चाहता था पर मुझे किसी ने मंच पर आमंत्रित नहीं किया। और मेरे अंदर खुद इतनी हिम्मत नहीं थी कि में खुद जाकर मास्टर जी से ये कहूं की मैं कुछ कहना चाहता हूं।
उमंग में बाल संगठन के सामने खुल कर बोलने का जो मौका मुझे मिला वहां मेंने अपने सारे जज्बात उड़ेल दिये। जिसे प्रदीप जैसे अनेक मित्रों ने समझा और सरहा।
फिर क्या था मुझे ऐसे मौके मिलते गए और मैं बोलता चला गया। अब हमेशा चुप रहने वाला दीपक बाल मंचों में हमेशा बोलता था। कक्षा 11 और 12 में एक हजार बच्चों की परेड में मैं मंच पर आकर खुलकर बोलने लगा था। ये मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन था।
वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया से जुड़ने के बाद अब में खुद को पूरी दुनिया के साथ जुड़ा हुआ महसूस करने लगा था।
एक नया जुनून जो मेरे अंदर अभी अभी पैदा हुआ था उसके साथ एक रोज कॉमिक्स का बेसिक प्रशिक्षण लेकर मैंने अपने करियर को गति देना शुरू किया। अपने पढ़ाई को जारी रखते हुए मेंने अपना भविष्य कार्टून और कॉमिक्स की दुनिया में देखना शुरू किया।
वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया के आॅफिस दिल्ली में 5 साल में बिताए कभी 6 दिन के लिए दिल्ली आ जाता तो कभी छ: महीनों के लिए। और कभी साल भर के लिए। वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया ने एक महत्वपूर्ण कोर्स की शुरूआत की जिसे कॉमिक्स जर्नलिज्म का नाम दिया गया। मुझे खुशी है कि मैं इसका पहला विद्यार्थी था। जिसने कॉमिक्स और पत्रकारिता की बारीकियों को एक साथ सीखा।